जम्मू वैष्णो देवी की यात्रा तो तकरीबन दस साल पहले भी की थी पर इस बार शिवखोरी जाना नया अनुभव रहा है...कटरा से ८० किमी की दूरी पर रन्सू इलाके का यह तीर्थ लगभग पांच साल पहले तक सवेंदनशील क्षेत्र माना जाता था क्योंकि यह राजौरी-पुँछ सेक्टर से सटा हुआ है...उस समय पर्यटकों को पहचान पत्र रखने की जरुरत रहती थी...क्या पता कब पुलिस चेकिंग होने लगे।
२ की रात को पौने नौ बजे नयी दिल्ली-उधमपुर जाने वाली उत्तर जनसंपर्क क्रांति से हमारा १२ सदस्यीय दल सुबह ६ बजे जम्मू तवी रेलवे स्टेशन पर उतरा ..वहां से जम्मू और कश्मीर राज्य परिवहन की बस पकड़ कर कर कटरा पहुंचे. सत्य होटल में ६०० रुपये की दर से दो रात के लिए कमरे लिए...एक महिलाओं के लिए और एक पुरुषों के लिए. कमरे में सामान रखकर नित्यकर्म के बाद करीब ११ बजे वैष्णो देवी भवन के लिए चढाई शुरू की...चूँकि हमारे ग्रुप में एक ७१ वर्षीय बुजुर्ग महिला भी थी , इसीलिए भवन पहुँचने में औसत ३-४ घंटे से अधिक समय लग गया...अनुरोध करने के बावजूद उन्होंने घोडे-खच्चर-पालकी पर सवारी करना स्वीकार नहीं किया...उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए ४:३० बजे गुफा में पिंडियों के दर्शन किये. सुबह से सिर्फ चाय का ही पी थी ..५ बजे भोजन करने के उपरांत वाया भैरों मंदिर होते हुए आदिकुमारी की गुफा में ९ बजे करीब बजे कतार में लगे. इसी बीच में सिने तरीका सुष्मिता सेन के अपनी पुत्री के साथ वीआइपी दौरे के चलते ४५ मिनट और अपनी बारी का इंतजार करना पड़ा ...हमारे सफ़र के गाइड (गाइड इसलिए की वो पिछले १५ वर्षों से लगातार दर्शनार्थ वहां जाते रहे हैं ) महेंद्र भैया ने चुटकी ली ...लो तुम्हे एक और देवी के दर्शन करा दिए...मेरे भाई ने उससे हाथ मिलाया था...मैंने मजाक में कहा अब हाथ मत धोना...अंतत साढ़े ग्यारह बजे तक हमारे समूह ने दर्शन कर लिया था..तत्पश्चात अपने रूम पर १ बजे करीब पहुंचे ..रास्ते में ही रात का खाना खा लिया था. 2 बजे तक सब बिस्तर पर निढाल हो चुके थे.
५ घंटे के सफ़र के बाद पाकिस्तान की ओर बह रही चेनाब नदी पार करते हुए हम शिवखोरी की चढाई के लिए बस से उतरे ....होटल वाले को खाने का मेनू बताकर चले गए थे क्योंकि खाना वहां २ घंटे पहले आर्डर करना पड़ता है। १:३० बजे होटल से २० २५ कदम की दुरी से श्राइन बोर्ड द्वारा निर्मित ४.५ किमी के यात्री मार्ग से ऊपर गुफा में पहुंचे.३ बजे तक दर्शन करके वापस होटल पहुँच चुके थे....घाटी से सटी हुए इस इलाके में गेहूं की फसल लहलहा रही थी....खैर के कांट-छाँट किये हुए काले पेड़ आकाश की ओर सर उठाए थे...लाल फूलों से लदे सेमल के वृक्ष हरे भू दृश्य में सुन्दर कंट्रास्ट पैदा कर रहे थे....५ बजे वहां से वापस कटरा के लिए रवाना हुए.
फिर रास्ते में रियासी इलाके में एक पार्क था....उसमें शिवखोरी के एक और मंदिर और छोटे से ताल में मछलियाँ थी....हरे-नीले पानी में मछलियाँ भी मयूर रंगों में चमक रही थी....उसी पार्क के पीछे की तरफ एक पहाड़ था जिसकी चोटी पर एक किला दिखाई दे रहा था...कहते हैं कि वो किला जम्मू के किसी राजा का था.
अगले दिन १२ बजे कटरा को अलविदा कर रेलवे स्टेशन गए। रेलवे परिसर के क्लोक रूम में सामान जमा किया । ट्रेन ८:३० की थी इसलिए स्टेशन से आरटीवी नुमा छोटी बस से ५ रुपये प्रति व्यक्ति की दर से रघुनाथ मंदिर गए। भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग के अलावा एक पारदर्शी शिवलिंग भी इसकी विशेषता है। दोपहर के भोजन के बाद वहां की प्रसिद्ध चोकलेट बर्फी जो काफी कुछ स्वाद में बाल मिठाई से मिलती जुलती है, लेकर खील अखरोट (अखरोट तो वैष्णो देवी के प्रसाद की पहचान बन चुकाहै) इत्यादि प्रसाद की सामग्री ली।फिर वापस ७ बजे रेलवे स्टेशन पहुंचे। अपना सामान वापस लेने के बाद ४५ मिनट तक प्लेटफोर्म के फर्श बैठ कर ही बिताये । हमारा प्लेटफोर्म नोम्बर ९ था पर वहां काफी भीड़ थी, इसलिए हम ८ पर चले गए और १५-२० मिनट पहले वापस अपने प्लेटफोर्म पर आकर दिल्ली की राह पकड़ी.