Thursday, June 4, 2009

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा !

देश की राजधानी दिल्ली में पेयजल की समस्या गहराती जा रही है है। कभी ३०-३५ फीट की गहराई पर मिलने वाले पानी का भूजल स्तर ३०० फीट तक पहुँच गया है. इस समस्या के मूल में हमारी रोज़मर्रा के कामों के लिए जरुरत से ज्यादा पानी की बर्बाद करने वाली लापरवाह आदतें तो शामिल है ही साथ ही प्रशासन की जल प्रबंधन और जलस्रोतों की रखरखाव सम्बन्धी नीतियों को भलीभांति लागू करने में बरती जा रही कोताही भी बराबर की हिस्सेदार है. पानी के उपयोग और संरक्षण के प्रति हमारा उदासीन रवैया यही रहा तो तीसरे विश्वयुद्ध की जड़ में जलाभाव का संकट होने के कयास गैर गैर गैर सच होते देर नहीं लगेगी.


जिन्दगी की इस बुनियादी जरुरत के महत्त्व को समझते हुए सफ़र (सोशल एक्शन फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च ) संस्था ने २३ मई २००९ को वजीराबाद गाँव स्थित कार्यालय में ' कलर्स ऑफ़ वाटर' डॉक्युमेंटरी स्क्रीनिंग का आयोजन किया। वृत्तचित्रकार विजेंद्र द्वारा बनायीं गयी इस फिल्म में राजधानी के अलग-अलग इलाकों में पानी को लेकर निवासियों को होने वाली दिक्कतों को फिल्माया गया है.साथ ही जायजा लिया गया है पानी से सम्बंधित कानूनी प्रावधानों का. निजी बिल्डरों द्वारा कॉलोनियों को बनाने में समर जेट पम्प लगाने की हरकत हो या सार्वजानिक नल पर और पानी के टैंकरों पर टूटी भीड़ में सर-फुटौव्वल का रोजाना मंजर हो या फिर जल बोर्ड की टूटी हुयी पाइप लाइनों और टैंकर के बहते हुए नल हो, डॉक्युमेंटरी में न केवल समस्या के पहलुओं को दिखाया गया बल्कि जनता से ही पानी को बचाने की कोशिश की पहल करने की इच्छा को भी सामने रखा गया है.


इसी मुद्दे से जुडी एक और लघु फिल्म 'कम पानी जादू ज्यादा ' में एक लीटर पानी से पूरी कार की सफाई के उपाय को दिखाया गया। इसी तरह का एक और प्रयास शेविंग क्रीम की जगह अलोवीरा की पत्तियों के इस्तेमाल से पानी की खपत को कम करने में नजर आया.


जल सरंक्षण पर केन्द्रित इन दो लघु फिल्मों के अलावा 'पूर्वधारणा' नामक वृतचित्र में चार लघु कथाओं को पिरोया गया। राजा द्वारा बनायीं गयी इस फिल्म में तमाम तरह के पूर्वाग्रहों को प्रस्तुत किया गया है. अंग्रेजी न जानने वालों के प्रति संकीर्ण रवैय्या हो या घर पर स्त्री को देखते हुए हमेशा यह कहना की ' क्या कोई आदमी (पुरुष) नहीं है ' का अक्सर किया जाने वाला लिंग-भेदी सवाल के वर्तमान समाज में मौजूद है. पुलिस की रॉब गांठने वाली आम छवि के विपरीत दुर्घटना स्थल सकारात्मक तस्वीर को पेश करती कहानी हो या फिर देश के मुसलमानों के प्रति गैर-मुस्लिम नागरिक की शंकालु दृष्टि को बयां करती हुई पेशकश काबिल-ऐ-तारीफ थी.