Wednesday, October 21, 2009

चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का जौहर

एक लंबे अरसे बाद ब्लॉग लिखने का मन हुआ...तो सोचा की अपने ऍम फिल के जारी शोध कार्य से सी ब्लॉगर साथियों को अवगत करा दिया जाए...सोनी टीवी पर सोमवार से गुरुवार रात आठ बजे टेलेकास्ट होने वाला नितिन देसाई के प्रोडक्शन का धारावाहिक 'चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का जौहर की सांस्कृतिक निर्मितियां' मेरे लघु शोध प्रबंध का विषय है....हिन्दी साहित्य के अध्येता मलिक मुहम्मद जायसी की कृति पदमावत से परिचित होंगे....मैं उसी को उपजीव्य बनाकर धारावाहिक रूपांतर के साथ मिथकीय धारावाहिकों की एक परम्परा में इस धारावाहिक को भी देखने की कोशिश की। सांस्कृतिक अध्ययन पदधति और माध्यम अध्ययन की स्त्रीवादी आलोचना की मिश्रित कसौटियों को टेलिविज़न विमर्श के परिप्रेक्ष्य में धारावाहिक को डीकोड करने का प्रयास जारी है। चूँकि नितिन देसी फ़िल्म जोधा अकबर को भी बतौर सेट परिकल्पना निर्देशक अपनी सेवायें प्रदान कर चुके हैं...इसलिए सीरियल के कई सिक्वेंस ' जोधा अकबर' का ही प्रतिरूप मालूम होते हैं..शुरुआत में १०४ एपिसोड बनाने की घोषणा की गई थी...परतु अपेक्षित टी आर पी नही मिलने की वज़ह से सीरियल ५० एपिसोड में ही ख़त्म हो गया। धारावाहिक की सभी कड़ियों का ट्रांसक्रिप्शन किया है। तेजस्विनी लोनरी (पद्मिनी) रोहित बक्षी (रतनसिंह ), मुकेश ऋषि (अल्लाउद्दीन खिलजी ) अभिनीत इस धारावाहिक को रामायण की तरह ट्रीट करने की कोशिश भी कई दृश्य प्रसंगों में है...सिंघल द्वीप और चित्तौड़ की सांस्कृतिक विभिन्नताओं को भी उत्तर पश्चिमी भारत बनाम दक्षिण भारतीय तहजीब के अंतरों में देखा जा सकता है....सबसे बड़ी बात पद्मिनी अफगान खिलजी के समक्ष एक हिंदू प्रतिरोध को भी सामने लाती है...अमीर खुसरो का किरदार भी दरबारी कवि का ही बनकर रह गया है..जिसका उपयोग खिलजी कोहिनूर हीरे का पता लगाने के लिए कर रहा है..धारावाहिक में कोई सुग्गा/ तोता नही है....चेतन राघव ही रतनसिंह , नागमती और खिलजी के सामने पद्मिनी का सौन्दर्य वर्णन कर रहा है....कई साथियों ने इसे ओनर किलिंग और सती प्रथा से जोड़ा....पर जब चन्द्र शेखर आजाद अंग्रेजों से मुठभेड़ के दौरान खुद गोली मारकर मृत्यु को गले लगते हैं...और लक्ष्मीबाई अपने सैनिकों को निर्देश देती है की गोरे उनके शव को छूने ना पाए...तो सोचना पड़ता है....की क्या ये महज़ स्त्री जाति के आत्म सम्मान की रक्षा के लिए उठाया गया कदम भर था..अगर ऐसा था तो क्यों कलिंग की रक्षा के लिए स्त्रियों ने शास्त्र उठाये थे जिसकी परिणित बाद में अशोक की युद्ध से विरक्ति में दिखाई देती है...या इसके पीछे सांस्कृतिक राजनीती छुपी हुई थी. इतिहास के विद्यार्थियों ने कहा की उस समय चित्तौर से होकर ही मार्ग जाता था...इसलिए भी चित्तौर को हमले झेलने पड़े....एक जगह धारावाहिक में पद्मिनी का मामा गोरासिंह इसकी स्वीकारोक्ति देता है. धारावाहिक के अंत में वी एल सी सी का ऐड धारावाहिक में पद्मिनी की सुन्दरता का राज बताता है और धारावाहिक में पद्मिनी का ब्यूटी क्वीन में रूपांतरण कर देता है।