Indo-Asian News Service में कार्यरत और http://www.anubhaw.blogspot.com/ ब्लॉग के संचालक गिरीन्द्रनाथ झा ने दक्षिण परिसर , दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रकाशित पाक्षिक अख़बार "संधान" के मीडिया विशेषांक, १-१५ मई २००८ के लिए विशेष आग्रह पर हिन्दी में ब्लॉग लेखन के प्रचलन पर लेख लिखा....जिसे यहाँ पर बिना कट-कॉपी-पेस्ट यानी संपादन रहित ओरिजनल फॉर्म में पेश किया है।
हम एक अलग दौर के इंसान है, एक ऐसा दौर जहां तकनीक हमारे संग हर वक्त चलने को तैयार रहता है। इसके संग हम भी चलें यह भी आवश्यक है, कह सकते हैं हमारी जरूरत है। तकनीकी सुविधा-व्यवस्था से हम दूर तो रह ही नहीं सकते हैं। जबसे हिन्दी ब्लॉगिंग ने अपना स्पेस हमारे लिए बढ़ाया है, उसी समय से हम तकनीक की दुनिया से और भी नजदीक होते गये। हिन्दी अपनी उपस्थिति नेट पर जिस गति से बढ़ा रही है, उसके पीछे कहीं न कहीं हिन्दी ब्लाग का ही हाथ है।ऐसे कई उदाहरण हैं जिससे इस बात की पुष्टि हो सकती है कि एक आम आदमी ब्लाग के जरिए किस प्रकार तकनीकी दुनिया से सहज होता गया। दरअसल यहीं से हिन्दी आनलाईन की तकदीर बदलनी शुरू हुई। भले हीं कुछ लोग इस दुनिया से पहले से ही परिचित थे, लेकिन उनकी संख्या कुछ खास नहीं थी। दरअसल वे इस दुनिया के आम नहीं खास रहे हैं। शायद इसी काऱण वे इस दुनिया में काफी तेजी से अपनी राह बना पाए।लेकिन एक ऐसा भी दौर आया जब लोग यहां काफी सहज होकर अपना आशियाना बनाने लगे। यह दौर काफी नया है। यूनिकोड के सुलभ हो जाने से सभी ने नेट पर हिन्दीयाना (हिन्दी में लिखना) प्रारंभ किया। कंप्यूटर से खार खाए लोग भी की-बोर्ड से यारी करने लगे, और यहीं से हिन्दी का एक अलग रूप सामने आया। ब्लॉगस्पाट डाट कॉम ने इस पूरे प्रकरण में तो कमाल का काम किया है। कुछ इसी तरह का काम हिन्दीनी डाट काम ने भी किया। इस वेब के औजार विभाग ने तो हिन्दी को सर्व सुलभ बनाने में ऐतिहासिक काम किया है। ठीक उसी प्रकार जैसे रवि रतलाम रचनाकार और अपने काम के द्वारा कर रहे हैं।
वैसे हिन्दीनी को लोगों से रू-ब-रू कराने में सराय-सीएसडीएस के रविकान्त का भी हाथ है। सराय के दीवान@ सराय द्वारा इसका प्रचार-प्रसार हुआ है। फरवरी 2007 से तो हिन्दी ब्लॉगिंग सुनामी की तरह फैलने लगी। ऑन-लाइन हिन्दी का यह स्वर्णिम काल रहा है। पानीपत के हरिराम किशोर भी हिन्दनी के जरिए ब्लागियाने लगे। इसी बीच लोग मंगल फॉन्ट से परिचित हुए। यह तो और भी आसान निकला। अपने एक्सपी सिस्टम में लोग खुद हीं हिन्दी इन्सटॉल करने लगे। पहली बार जब किशनगंज बिहार के अरमान ने अपने सिस्टम के टुलबार पर HN और EN को स्थापित किया तो वह खुशी से पागल हो उठा। उसके अनुसार अब मैं तो फाईल नेम भी हिन्दी में ही लिखूंगा..। सबकुछ आसान होता गया, कह सकते हैं डॉट-कॉम की राह हमारे लिए टनाटन बन गयी। आज लोग जमकर हिन्दी में वेब पन्नों पर लिख रहे हैं। शायद राह और भी आसान होगी हमारे लिए, ठीक इसी बीच हमारे परिचय के दायरे में गूगल का ट्रांसलेटर औजार आ धमका। खुशी और भी बढ़ी..अब कमल लिखने के लिए kamal हीं लिखना पड़ रहा है। यहां मात्राओं और वर्णों में भी शुद्दता का ध्यान रखा गया है। दरअसल http://www.hindini.com/ के औजार पर इस तरह की आसानी का अनुभव हम नहीं कर पा रहे थे।आनेवाला समय हिन्दी को ऑन-लाईन की दुनिया में और भी तेज रफ्तार से आगे ले जाएगा, ठीक फटाफट ट्वेंटी-20 क्रिकेट की तरह। बस हम सब अपने-अपने कामों के बीच भी हिन्दी को ऑन-लाईन दुनिया में पूरा स्पेस देते रहें।
ब्लॉग की दुनिया में नित नए प्रयोग होना कोई नई बात नहीं है। तकनीक के साथ-साथ कदम बढ़ाते ब्लॉगर चित्रों, दृश्य-माध्यम (वीडियो) और श्रव्य माध्यम (ऑडियो) के जरिए अपनी बात हर रोज कहते नजर आते हैं। गौर करनी वाली बात यह है कि ब्लॉग में ऑडियो रूप को लेकर जितने प्रयोग किए जा रहे हैं, वह सफल भी हो रहे हैं। अब ऐसा माना जाने लगा है कि कई ब्लॉग 'रेडियो रूपातंरण' की ओर कदम बढ़ाने लगे हैं। वैसे तो कई ब्लॉगर अपनी पोस्ट में ऑडियो के साथ नजर आ जाते हैं लेकिन 'रेडियोवाणी' एक ऐसा ब्लॉग है जो खास रेडियो के अंदाज में पाठक-श्रोताओं तक गीतों, गजलों, कव्वाली को पहुंचा रहा है।रेडियो चैनल 'विविध भारती' के लिए उद्घोषक के रूप में काम कर रहे यूनुस खान मुम्बई से इस ब्लॉग को चला रहे हैं। इस ब्लॉग में पुराने हिंदी फिल्मी गीतों के साथ-साथ प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतकारों के बेहतरीन नगमों का भी आप लुत्फ उठा सकते हैं। 'रेडियोवाणी' की एक खासियत यह है कि यूनुस खान इस ब्लॉग में गीत तो सुनाते ही हैं साथ ही गीतों से जुड़ी कई रोचक बातों को भी अपनी पोस्ट के जरिए पाठकों तक पहुंचाते हैं।युनूस अपनी एक पोस्ट में लिखते हैं कि, रेडियोवाणी पर इच्छा तो होती है कि रोज एक नया गीत सुनवाया जाए लेकिन ये मुमकिन नहीं और ना ही व्यावहारिक है, क्योंकि किसी गीत को जेहन में उतारने में वक्त लगता है। सुना हुआ गाना तो जेहन पर अपनी छाप बना लेता है पर अनसुना गाना थोड़ा वक्त मांगता ताकि वह अपनी जगह बना सकें।"ऑडियो के साथ-साथ इस ब्लॉग पर गीतों को आप पढ़ भी सकते हैं। जैसा कि उन्होंने अपने एक पुराने पोस्ट में 1974 में प्रदर्शित फिल्म 'कादम्बरी' में प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम का लिखा गीत 'अंबर की एक पाक सुराही बादल का एक जाम उठाकर' सुनाया और पढ़ाया।लोगों की ढेर सारी प्रतिक्रियाएं आईं। सभी को यह गीत काफी पसंद आया क्योंकि काफी कम लोगों ने इसे सुना था।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इंटरनेट पर हिंदी की उपस्थिति इन दिनों लगातार बढ़ती जा रही है। ब्लॉग के जरिए तो इसमें और इजाफा हो रहा है। ब्लॉग जगत में इन दिनों एक नए तरह के ब्लॉग का उदय हुआ है। खास बात यह है कि इस विशेष ब्लॉग में केवल और केवल बेटियों की ही चर्चा हो रही है।जी हां, 'बेटियों का ब्लॉग' एक ऐसा ही ब्लॉग है जहां ब्लॉगर माता-पिता अपनी बेटियों के बारे में बातें लिखते हैं। दरअसल, यह एक सामुदायिक ब्लॉग है जहां एक ही छत के नीचे कई ब्लॉगर माता-पिता इकट्ठा होकर अपनी बेटियों के बारे में तरह-तरह की बातें लिखते हैं।फिलहाल इस ब्लॉग के ग्यारह सदस्य हैं। सभी लगातार ही अपनी घर के क्यारी की बिटिया के बारे में लिखते रहते हैं। इस ब्लॉग की चर्चा इन दिनों हर जगह हो रही है। काफी कम समय में यह ब्लॉग लोकप्रिय हो गया है।इस ब्लॉग को शुरु करने वाले अविनाश दास ने अपने पहले पोस्ट में लिखा कि, "ये ब्लॉग बेटियों के लिए है। हम सब, जो सिर्फ बेटियों के बाप होना चाहते थे, ये ब्लॉग उनकी तरफ से बेटियों की शरारतें, बातें सांझा करने के लिए है"।उन्होंने अपने इस पोस्ट का टाइटल रखा- 'आईए बेटियों के बारे में बात करें'। इस ब्लॉग पर लिखने वाले सभी ब्लॉगर अपनी बेटियों के बारे सामान्य लेकिन रोचक रिपोर्ट प्रकाशित करते रहते हैं।इसमें शामिल एक ब्लॉगर जितेन्द्र चौधरी का कहना है कि इसमें बेटियों के रोचक क्रियाकलापों को भी शामिल किया जाएगा। पत्रकार रविश कुमार अपनी पोस्ट 'बाबा तुम बांग्ला बोलो तो' में काफी रोचक अंदाज में बताते हैं कि चार साल की बेटी 'तिन्नी' उन्हें किस प्रकार बंगाली भाषा का ज्ञान दे रही हैं। बंगाली भाषा का ज्ञान बांटती अपनी बेटी के बारे में वह लिखते हैं कि वह उनसे कहती है कि, "चलो मैं सिखाती हूं। जब मैं बोलूंगी कि 'बाड़ी ते चॉप बनानो होए छे' तो तुम बोलेगे- 'के बानिये छे'। फिर मैं बोलूंगी- 'नानी बानिये छे'।चार साल की बेटी ने एक मिनट में रैपिडेक्स की तरह बांग्ला के दो वाक्य सिखा दिए"।एक ब्लागर पुनीता ने 'क्या बेटियां पराई होती हैं' के शीर्षक से अपनी बात कहने की कोशिश की है। शादी के बाद पिता के साथ एक भेंट को उन्होंने काफी अलग अंदाज में बयां किया है। इस तरह की कई रोचक पोस्ट इस ब्लॉग पर पढ़ने के लिए हाजिर हैं।
अंकुर शंकर एक प्रशिक्षित इंजीनियर हैं लेकिन इस 25 वर्षीय छात्र को अर्थशास्त्र से प्यार है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स उसे प्रवेश देना चाहता है लेकिन हर मध्यम वर्गीय परिवार की तरह अंकुर के पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं।अब ऐसी स्थिति में जहां लोग ऋण लेकर या छात्रवृत्ति के जरिए पैसे जुटाने की कोशिश करते हैं अंकुर कुछ अलग कोशिश कर रहे हैं।अंकुर कहते हैं, "मैंने एक ब्लॉग http://www.milliondollarstory.blogspot.com/ शुरू किया है। मुझे उससे 44 लाख रुपए कमा लेने की उम्मीद है।"आप कहेंगे क्या बेवकूफी है। लेकिन यह तरीका काम कर रहा है। एक महीने में ही 5,000 लोग इस साइट पर आ चुके हैं और अंकुर ने अब तक 8,000 रुपए कमा लिए हैं।कुछ यह तरीका अपनाते हैं अंकुर।वह कहते हैं, "इंटरनेट पर कई मुफ्त विज्ञापन कार्यक्रम होते हैं। आपको अपने होमपेज (गृह पृष्ठ) पर एक डालना होता है। अब जितनी बार भी कोई इंटरनेट इस्तेमाल करने वाला साइट पर आता है प्रोग्राम का मालिक आपको पैसे देगा। अगर वह व्यक्ति विज्ञापन पर क्लिक करता है तो आपको और पैसे मिलते हैं।"दो साल पहले, इस वेबसाइट ने केवल विज्ञापन के लिए जगह देकर अपने मालिक को लाखों रुपए कमाने का मौका दे दिया था। एक भारतीय लड़की ने भी यह तरीका अपनाकर अच्छी खासी कमाई कर ली थी।लेकिन अंकुर कुछ अलग प्रयोग कर रहे हैं। वे अपनी साइट पर लघु कहानियां डाल रहे हैं, इस उम्मीद में कि लोग और जानने के लिए वापस साइट पर आते रहेंगे। हर दिन एक कहानी यानी अप्रैल तक 180 कहानियां।अंकुर कहते हैं, "मेरी फुल टाइम नौकरी है। इसलिए जब भी समय मिलता है तब मैं कहानी लिखता हूं। मुझे कॉपी सम्पादित कर डालने में तीन घंटे लग जाते हैं"30 दिनों में 8,000 रुपए कम नहीं होते, लेकिन अंकुर को लंदन जाने के लिए इसके 500 गुना पैसे की जरूरत है।वे कहते हैं, "हो सकता है कि केवल ब्लॉग से ही पैसे न आएं, लेकिन जो प्रचार यह कर रहा है वह कुछ जादू जरूर कर सकता है। अगर कोई व्यवसायी ने इसे देखकर मेरी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई को प्रायोजित करने के लिए तैयार हो जाता है तो मेरा वादा है कि मैं वापस आकर पांच साल के लिए केवल उस व्यवसायी के लिए ही काम करूंगा।"
ब्लॉगिंग सिर्फ वक्त बिताने का एक जरिया नहीं बल्कि आप घर बैठे इससे पैसे भी कमा सकते हैं। पुणे में आयोजित हुए ब्लॉगकैम्प 2007 में 21 साल के एकलव्य ने जब मंच पर कदम रखा तो इसके पीछे केवल उनकी कड़ी मेहनत का हाथ था। एक पेशेवर ब्लॉगर होने के नाते एकलव्य नई तकनीकों की समीक्षा करके प्रति माह एक लाख रुपए कमा लेते हैं।एकलव्य भट्टाचार्य कहते हैं, "कम्पनियां हमसे दर्शकों को व्यस्त रखने के तरीकों के बारे में पूछती हैं, चाहे वह कोई उपभोक्ता हो या फिर भविष्य का ग्राहक। हमारे ग्राहकों में शामिल हैं गेमिंग पोर्टल, सामाजिक मेलजोल की साइट और अन्य तकनीक से संबंधित वेबसाइट जो बाजार में आई या आनेवाली नई तकनीक, आईपॉड, मोबाइल और लैपटॉप के विषय में जानकारी देती हैं।ब्लॉग की दुनिया नई तकनीक बनाने वाली कम्पनियों के लिए अपने उत्पादों का प्रचार करने का एक सशक्त जरिया बन चुकी है। कम्पनियां इंटरनेट पर अपने उत्पादों का प्रचार करने के लिए विशेषज्ञ ब्लॉगर को नियुक्त करती हैं।सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसके लिए आपको कोई पेशेवर ब्लॉगर होने की जरूरत नहीं। एक आम ब्लॉगर भी पैसे कमा सकता है। बस अपने ब्लॉग और अपने लेखन को पेश करने का तरीका आपके पास होना चाहिए और बस शोहरत आपके कदमों में होगी।साक्षी जुनेजा ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि केवल शिल्पा शेट्टी और बिग ब्रदर प्रकरण पर लिखने से वे लगभग 36,000 रुपए कमा लेंगी। उन्हें बस अपने ब्लॉग पर विज्ञापन लाना था। विज्ञापन कम्पनी ने अपने विज्ञापनों को साक्षी के ब्लॉग पर आने लोगों के सामने प्रदर्शित करने के लिए यह कीमत दी है।साक्षी जुनेजा कहती हैं, "जब आप अपनी साइट पर कई लोगों और विज्ञापनों को लाने में कामयाब हो जाते हैं तो समझिए कि पैसों का आना भी शुरू हो जाता है। जितने ज्यादा लोग आते हैं उतना ही वे विज्ञापनों पर क्लिक करते हैं। यह मेरे और शिल्पा शेट्टी दोनों के लिहाज से अच्छा हुआ।"लेकिन आप ब्लॉग लिखने वालों को मिलने वाली शोहरत और पैसों के मोह में कहीं खो न जाएं क्योंकि हो सकता है कि स्पैम ब्लॉगर आपको मुसीबत में डाल सकते हैं।
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