Tuesday, August 12, 2008

सानिया के बहाने

सानिया मिर्जा की पोशाक पर विवाद एक खिलारी और एक मुस्लिम औरत के बहाने से भारतीय समाज में तथाकथित इस्लाम को कट्टरपंथी मजहब समझे जाने की इस तहकीकात है। मूलतः तीन तरह के सवालों से जूझता हुआ यह परिदृश्य भारत के सामाजिक संस्कृति और चेहरे को तो टटोलता हे है, साथ ही इस बात की भी जांच करता है की क्या उपभोक्तावाद तथा पैकजिंग के विज्ञापन के इस दौर में स्त्री अस्मिता पर यौन संकीर्णता कितनी हावी है?


पहला सवाल यह की इस्लाम में स्त्री की आज़ादी किन हदों में बंधी है, दूसरा परदा प्रथा के मूल में nihit भावनाएं क्या हैं और आधुनिक समाज में इसका क्या औचित्य है…तीसरा क्या महिलाओं ke प्रति वस्तुवादी रवैया तथाकथित रूप से इस्लाम में हे है…उसकी और मतों से क्या समानता है। इस्लाम में महिलाओं को एक से अधिक विवाह की अनुमति है पर इक वक्त पर वह एक ही शौहर की बेगम बनेगी जबकि पुरूष एक साथ चार पत्नियों को रख सकते है…इस हिदायत की साथ की वह सबके साथ इंसाफ और बराबरी का सलूक करें. एक पुरूष अपनी पहली पत्नी की रजामंदी क बाद ही दूसरा निकाह कर सकता है, हालाँकि इस बात पर कितन अमल होता होगा…इसकी भूमिका संदिग्ध है. शादी के समय मेहर की रकम तय की जाती है, जो तलाक या सम्बन्ध विच्छेद के समय दी जाती है…स्त्री पति इंतकाल के समय अपना मेहर माफ़ कर पति को क़र्ज़ से आजाद करती है.अगर कोई माता स्तनपान करने से इंकार करती है तो खाविंद को और इन्तेजाम करने होगें…ऐसा इस्लामी शरियत में ज़िक्र है.


पैगम्बर हज़रत मुहम्मद ने अपने अनुयायियों को उपदेश दिया था की अपनी औरतों को परदे में रखो क्योंकि उस समय स्त्रियों पर आसक्त हो कर बलवा करने और अगवा करने की प्रवृत्तियां बलवती थी और इससे कोम के अन्दर हे फ़ुट होने अंदेशा रहता था। पर आज मध्य-पूर्व के देशों में महिलाएं टैक्सी ड्राईवर का भी काम करती है…इसराइल की सेना में महिलाएं युद्ध में मोर्चा संभालती है.कभी-कभी सांस्कृतिक हमलों के प्रतिकार के रूप में भी धार्मिक प्रतीकों का महत्व बढ़ जाता है. फ्रांस में जब पगरी और स्कार्फ पहनने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया तो केरल में महिलाओं में बुरका पहनने की होर से लग गई. हिंदू धर्म में भी परदा प्रथा की बुनियादी वज़ह इसलाम का आगमन माना जाता है. इतिहासकारों ने लिखा है की हिन्दुओं ने यवनों की कुदृष्टि से अपनी महिलाओं को बचने के लिए परदे की शरण ली और ठीक यही हालत मुहम्मद हजरत के दौर में भी रहे होंगे. हिन्दी का आदिकाल तो जर, जमीन और औरत के लिए हुए युद्धों के किस्सों से भरा हुआ है. इस्लाम में तस्वीर बनाने की मनाही है, पर आज हज पर जाने की पासपोर्ट के लिए फोटो की जरुरत होती है... तो क्या लोग हज पर नही जा रहे हैं. कुरान में कहा गया है दीन आसान है. यदि कुछ कायदे कानूनों रवायातो का पालन नही भी हो पता है तो उसके लिए अल्लाह से गुजारिश की जा सकती है.रमजान में बच्चो , बुजुर्गों और बीमारों को रोजा न रखने की छूट है.


सानिया मुस्लिम समाज के लिए फक्र का सबब है…आम मुसलमान के लिए सानिया की पहचान बतौर खिलारी है॥और उसे यह फर्क नही परता की उसका पहनावा क्या है।सूचना क्रांति और बाज़ार के इस युग में सानिया विज्ञापनों के लिए ऐन्दोर्सेमेंट कर रही है. टेनिस के कई जानकार इसे खेल के लिए हानिकारक भी बताते रहे है..पर यह भी सच है की जब तब जनता में उनकी ‘मॉस अपील’ है तब तक वे विज्ञापनों की दुनिया में छाई रहेंगी…इसीलिए पल्स पोलियों अभियान और कैपैन अगेंस्ट की वे ब्रांड अम्बेसडर भी हैं.


सानिया के खेल से प्रेरित होकर कितनी महिलाओं ने टेनिस में अपना करियर बनाने के लिए सोचा होगा... इस सवाल से दो-चार होना भी बेहद जरुरी है. सानिया के चश्मे और नोसरिंग की नक़ल हुई. दरअसल फैशन को कॉपी करना कोई ज्यादा मशक्कत का काम नही है , पर जब वह टेनिस कोर्ट पर एक फोरहैंड स्ट्रोक लगाती हैं तो उसके पीछे उनकी परिश्रम और प्रशिक्षण छुपा है. यहीं पर टेनिस क्रिकेट से मात खा जाता है. क्रिकेट खेलने के लिए बैट बल्ला कहीं भी भांजा जा सकता है, पर टेनिस के लिए साजो-समान की जरुरत होती है ..गली-नुक्कढ़ में खेला जाने वाला क्रिकेट आम आदमी के जेब को सूट करता है, पर वहीं टेनिस, बिलियर्ड, स्नूकर की तरह एक महंगा खेल है. ऐसे में सानिया के खेल से प्रेरित लोग भी टेनिस को करियर आप्शन तौर पर नही देख पाते.

1 comment:

Kamakhya Narayan Singh said...

Bhawna you have written all that is pevailing and is part of history. But can I know what can you or I do