दलित स्त्री की आवाज पुरुषों द्वारा सृजित दलित साहित्य में कितना प्रतिनिधित्व पाती है और उनका चित्रांकन किस तरह से होता है, यह सवाल काबिलेगौर है? स्त्री उसमें भोक्ता और करता के रूपों में सवर्ण और अगरी और पिछ्री जातियों के द्वंदों में किस तरह आकर लेते हुए पाती है? उनका कैरेक्टर स्केच या चरित्र चित्रण सक्रिय और अक्रिय , प्रत्यक्ष और प्रछन्न तरीकों से दलित महिला मूल भावों , सम्वेदनाओं और कथ्य को कैसे प्रभावित करता है? ‘गेहूं के साथ घुन भी पिसता है’ की तर्ज़ पर सवर्ण महिलाएं ब्राह्मणवादी व्यवस्था का मोहरा बन पितृसत्तात्मक समाज के दमन चक्र में अनजाने तौर पर या जान -बूझकर शामिल होती है, के मसले से आगे एक gender के प्रस्तुतीकरण के ट्रीटमेंट पर दलित स्त्री की पैरोकार लेखिकाओं का आगे आना बेहद जरुरी हो जाता है।
मोटे तौर पर पुरुषों द्वारा सृजित हिन्दी दलित आत्मकथाओं में दलित महिला और सवर्ण महिला के अंतर्संबंधो के साथ ही दो तबको के आपसे व्यवहार कर परिचय निम्न रूपों में मिलता है :-
१- दलित महिला
>> दलित होने पर भी आधुनिक समाज व्यवस्था में सम्मान पाने की अभिलाषा के चलते जाति छुपाती महिला जैसे वाल्मिकी की भतीजी जो अपने कॉलेज में उन्हें पहचाने से भी इंकार कर देती है, इस डर से के कहीं उसकी जाति का पता लोगों को न चल जाए।
>>“सलाम” की प्रथा की शिकार दलित नव–वधुएं जिन्हें विवाह के उपरांत अपने पति के साथ ऊँची जातियों के दरवाजों पर सजदा करना परता है।
>>‘जूठन’ देने पर शादी के माहौल में अगरी जातियों के पुरुषों को लतारती वाल्मीकि की स्वाभिमानी माता।
>>चमरा उतारने जैसे तथाकथित जरायम पेशे से अपने देवर को दूर रखकर इक आशा का संचार करने वाली वाल्मीकि की भाभी ।
२- सवर्ण महिला
>>सवर्ण महिला ठकुराइन भगवंती जो अपनी यौन-क्षुधा की तृप्ति के लिए ‘तिरस्कृत’ में सूरजपाल सिंह चौहान के चाचा गुलफाम का साहचर्य चाहती है, पर और दलितों से नाक-भों सिकोरती है।
>>सूर्या संस्था की संचालिका आशा रानी वोहरा जैसे औरते जो दलित साहित्य को सिरे से नकार देती हैं जिसके जवाब में चौहान संत साहित्य, ब्रह्मण साहित्य , ललित साहित्य जैसे श्रेणियां गिनाते हैं।
>>सवर्ण पुरुषों की सामंती मानसिकता की दलित स्त्रियाँ महिला महिला दलित महिलाओं की तुलना में स्वयम को शीलवती और सच्चरित्र समझकर दलित औरतों का मखौल उरती हैं।
>>सवर्ण प्रेमिकाएं जैसी की ब्रह्र्मन सविता जो ओमप्रकाश वाल्मीकि से प्रेम करती है, परन्तु उनकी जाति का खुलासा होने पर अपने प्रेम सम्बन्ध का अंत कर जातीय दंभ का हुंकारा भरती है।
>>पुत्री का जन्म यानी जीवन भर काम में , grihasthiखटती , दुःख: और कलह , शोषण और यौन प्रतारणा की शिकार ज़िन्दगी
>>सवर्ण दलित महिलाओं को रखैल बना सकते है, प्रेमिका या पत्नी बनाकर विवाह संस्था के मद्देनज़र अपना dabdaba कायम रख सकते हैं, पर दलितों के घर किसी तरह का रोटी-बेटी का कोई रिश्ता नही रखते।
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