अज्ञेय की यह कविता वैदिक काल के जुझारू मानव के संघर्ष की याद दिलाती है जो आत्मविशवास से भरपूर मगर प्रकृति पूजक और उसका सहचर है ....इसलिए जब भी सतत विकास की बात होगी तो छायावाद के मानवतावादी तेवर के साथ प्रकृति-मानव के निर्मल रिश्तो के समर्थक अज्ञेय का अलग ही व्यक्तित्व सामने आता है । ज्योति पर्व के मौके पर अज्ञेय की कविता "यह दीप अकेला " (कविता पर क्लीक करके बारे फॉण्ट साइज़ मेंआनंद लें )ज्यादा मौजू हो जाती है....और आतिशबाजी के शोर से ज्यादा दीपक के प्रशांत आलोक को कही बेहतर तरीके से पुष्ट करती है. Wednesday, October 29, 2008
यह दीप अकेला
अज्ञेय की यह कविता वैदिक काल के जुझारू मानव के संघर्ष की याद दिलाती है जो आत्मविशवास से भरपूर मगर प्रकृति पूजक और उसका सहचर है ....इसलिए जब भी सतत विकास की बात होगी तो छायावाद के मानवतावादी तेवर के साथ प्रकृति-मानव के निर्मल रिश्तो के समर्थक अज्ञेय का अलग ही व्यक्तित्व सामने आता है । ज्योति पर्व के मौके पर अज्ञेय की कविता "यह दीप अकेला " (कविता पर क्लीक करके बारे फॉण्ट साइज़ मेंआनंद लें )ज्यादा मौजू हो जाती है....और आतिशबाजी के शोर से ज्यादा दीपक के प्रशांत आलोक को कही बेहतर तरीके से पुष्ट करती है.
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2 comments:
आभार इस रचना को यहाँ प्रस्तुत करने के लिए.
बहुत अच्छा िलखा है आपने ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
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