
Wednesday, October 29, 2008
यह दीप अकेला

Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सूरज ने अंगड़ाई ली / पहली किरण ने / अधखुली घुटी-घुटी आँखों / से काँच बगीचे का निरीक्षण किया...... चकाचौंध से चुंधिया कर उनींदी -उनींदी सी वह/ फिर सूरज में सिमट गई / दिन भर दुबकी रही....... एक म्यान में दो तलवारें कैसे रहतीं ? - सुधा ओम ढींगरा
2 comments:
आभार इस रचना को यहाँ प्रस्तुत करने के लिए.
बहुत अच्छा िलखा है आपने ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
Post a Comment