Thursday, December 25, 2008

कृष्ण का प्रतिबिम्ब क्राईस्ट

कृष्ण और येशु दोनों अवतारी पुरषों के जीवन में अद्भुत समानता मिलती है....कृष्ण का जन्म जहाँ कारागार में होता है...वहीं येशु जेरुशलम के एक अस्तबल में पैदा होते है....कृष्ण अगर गोपालक हैं जीसस को गड़रियों का ईश्वर कहा गया। वासुदेव पुत्र कृष्ण को देवकी के वातसल्य से उतना याद नही किया जाता जितना यशोदा के आँचल में खेलने वाले बालक के रूप में बाललीला याद की जाती है. akaran ही सूरदास ने द्वारकापति से अधिक नंदलाल को महत्व नही दिया है।
येशु के बारे में भी प्रचलित है कि वो ईश्वर का बेटा है और पैगम्बर है और मरियम से उसका सम्बन्ध यशोदा-नंदन से किसी भांति कम नही है। येशु को जब सूली पर चढाया गया तो वो कहते है '' हे ईश्वर इन्हें क्षमा करना ...क्योंकि ये नही जानते ये क्या कर रहे है ''...इसी तरह कृष्ण के तलवे में जब जरा व्याध का तीर चुभता है....और वो उनकी मृत्यु का कारण भी बनता है तो वो उसे स्वीकारते हुए उसे क्षमा कर देते है क्योंकि वह पूर्व जन्म का बाली होता है....जिसका रामावतार में कृष्ण ने वध किया था।


और अंत में शिशुओं की भांति निष्कपट मनन की कामना करते हुए येशु कहते हैं स्वर्ग का राज्य उन्ही को मिलेगा जिनका हृदय बच्चो की तरह निर्मल है...और ऐसे में तमिल कवि तिरुवल्लुवर का यह कथन shahaj hi याद आता है....वंशी मधुर है, वीणा मधुर है...ऐसा वही कहते हैं जिन्होंने शिशु की तोतली बोली का रस चखा हो।

2 comments:

P.N. Subramanian said...

पारसियों के पैगंबर भी ईशु की तरह कुँवारी माँ के बेटे थे. कुलमिला कर ईश्वर तो एक ही है. आभार, इस सुंदर लेख के लिए.
http://mallar.wordpress.com

संगीता पुरी said...

महामानव के गुण और परिस्थितियां एक होती हैं , इसलिए तो उन्‍हें ईश्‍वर का अवतार कहा जाता है....इतने सुंदर आलेख के लिए आभार।