Sunday, December 28, 2008

बांग्लादेश में एक लाख हिजडों को मिला मताधिकार

ढाका। बांग्लादेश में सोमवार को हो रहे आम चुनावों में पहली बार देश के एक लाख से ज्यादा हिजडों को वोट डालने का अधिकार मिला है । बांग्लादेश के चुनाव आयोग ने जन्म से या दुर्घटनावश हिजडा हो गए लोगों को वोट डालने का हक दिया है। जबकि विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत में भी हिजडों को नही प्राप्त है। (वार्ता, हिंदुस्तान २९ दिसम्बर, 2008)

क्या यह संसार के सबसे बड़े गणतंत्र के लिए शर्मनाक नही है की किन्नर मताधिकार से वंचित हैं....वो भी उस देश में जहाँ शबनम मौसी जैसे उदाहरण भी मौजूद है....वो चुनाव में खड़े हो सकते है....जनसमर्थन हासिल कर विधानसभाओं में पहुँच सकते हैं...पर नामांकन प्रक्रिया में हलफनामा देने के दौरान या मतदाता परिचय पत्र में उन्हें महिला या पुरूष के ' जेंडर' की श्रेणी में ख़ुद को रखना पड़ता है....क्या हम उन्हीं बगैर स्त्री-पुरूष के लिंग-भेद के बिना स्वीकार नही कर सकते?

5 comments:

संजय बेंगाणी said...

कोई (नागरीक) मतदाता चुनाव लड़ सकता है और किन्नर भारत में चुनाव लड़ चुके है. फिर कैसे कहें कि उन्हे मताधिकार नहीं है?

फ़्र्स्ट्रू said...

ये कोई ब्लोग लेखन का विषय है? हमारे यहां तो हिंजङे चीफ मिनिस्टर और प्राईम मिनिस्टर तक बन जाते हैं.

भावना said...

rahi baat meri posting ki jise aap blog lekhan ka topic he nahi samjhte...ye hum logo ke so called high culture morals ka result hai...jo certain topics ko hamare liye untouchable bana deta...have you ever talk with any eunuch..we just know them as a sort of begger group, troubling people in various auspicioius occasion...I have listned them...they also wish for the same disires like us...but those things which are easily made avilable to us becouse of specified gender of either male or female they don't get, considering them rude and chaotic creature on earth.
Coming to my posting on adult franchise of eunuch ... you, me can vote, identifying us in male or female category...what abt their category...they dont' have column as eunuch in any form, whereas we have categories for mentally retartded pple,disandants of freedom fighter, PH, SC, STs,Nationality etc.

Comments from संजय बेंगाणी , तरकश.कॉम
blog: www.tarakash.com/joglikhi

किन्नरों के प्रति मेरे विचार बहुत स्पष्ट है. उन्हे विकंलाग कोटे में नोकरी मिलनी चाहिए. वे जो जबरिया उगाही करते है, उस पर रोक लगनी चाहिए. उन्हे मताधिकार सहित तमाम अधिकार मिलने चाहिए. जबरिया किन्नर बनाए जाने पर कठोर नियंत्रण होना चाहिए.

संजय बेंगाणी , तरकश.कॉम
blog: www.tarakash.com/joglikhi

Sanjay Grover said...

भावना, मैं आपसे सहमत हूँ । और संजय बेंगाणी के अंतिम विचारों से भी।
तकरीबन 15-16 साल पहले ये कविताएं लिखी थीं।

वे

हांलांकि वे
जन्म से पुरुष थे
मगर
उनका सारा जीवन
यही सिद्ध करने में निकल गया
कि वे हिजड़े नहीं हैं।

और वे

पैदा तो हुए हिजड़े
मगर उनकी मर्दानगी देखिए
कि अपने आपको
जैसे का तैसा स्वीकार किया
और
पूरी ताक़त के साथ
समाज के सामने खड़े रहे।

रचना तिथि: 21-05-1992

(कथादेश, फरवरी 2002 में प्रकाशित)

Dev said...

First of All Wish U Very Happy New Year....

Achchha lekha...

Regards