Thursday, February 19, 2009

प्रोमो पर सेंसर की कैंची

ना आना इस देस लाडो का नया प्रोमो टीवी पर चल रहा है. पुराने प्रोमों पर सरकारी और गैर- सरकारी आपत्ति के चलते उसे हटाकर नए प्रोमो को लाया गया । इसमें कोई दो राय नहीं की पुराना प्रोमो ज्यादा असरदार था या कहें की झकझोर कर रख देने वाला था...पर सवाल यह उठता है की क्या गैर -सरकारी आपत्तियां उन लोगों द्वारा दर्ज की गई थी जो यह मानते हैं की कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं ग्रामीण रुढियों की उपज हैं या फिर उन ऊँचें तबकों से आवाजें जो यह कहते है कि आज की सोसाइटी में ऐसी असमानताएं घट रही हैं....कलर्स का फोकस देहाती पृष्ठभूमियों की रुढियों पर है...पर अगर इसी को शहरों के नर्सिंग होम में प्री-नेटल चेक अप के नाम होने वाली कन्या भ्रूण हत्या को शूट किया जाता तो भी क्या ऐतराज जाहिर नही होता...पर यहाँ पर एक चेतावनी यह साफ़ हो गई है कि आगे से टीवी सीरियल के निर्माताओं को भी फिल्मों की तरह सेंसरशिप से गुज़रना पड़ सकता है।

विज्ञापनों से भी अभी सख्ती से पेश आना प्रदर्शित भी है....शीतल पेयों और शराब बियर के विज्ञापन में जिस तरह से ऐडवेंचर फिल्माएं जातें है..मोटर साइकिल के करतब नुमा स्टाइल को जितनी स्पोर्टी स्प्रिट के साथ पेश किया जाता है...हैल्थ ड्रिंक्स से महामानव बनने के जो दावे पेश किए जाते हैं...उनकी तफ्तीश अभी तक प्रसारण मंत्रालय ने नहीं की है..और अगर कोई डिस्क्लेमर या सूचना प्रदर्शित भी होती है तो वो इतने कम समय के लिए होती है कि उसे पूरा पढ़ पाना अक्सर असम्भव होता है...तिस पर जो ५-७ साल के छोटे बच्चे विज्ञापन देखते है..क्या उनकी लिखित भाषा की नींव इतनी मज़बूत हो चुकी होती है...कि वो उस वैधानिक चेतावनी को पढ़ पाएं...आमतौर पर छोटे बच्चों के साथ बड़े लोग भी विज्ञापन को उसके टेक्स्ट के बजाय ऑडियो-विडियो से ही रिकाल करते है....इसीलिए बालिका वधु सीरियल के क्रेडिट रोल से पहले दिखाए जाने वाले राष्ट्रीय सर्वे के नतीजों को कोई इतनी तीव्रता से ग्रहण नही कर सकता जितना कि कार्यक्रम के अंत में लिखित और वाचित पंक्तियों पर सहज रूप से ध्यान जाता है।


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Govt wants foeticide show promo taken off air
The Women and Child Development Ministry on Tuesday asked TV channel Colors to withdraw the promo of its new serial Na Aana Iss Des Lado. The promo shows a group of men drowning a new born girl in a vessel and a man shouting “next year, give me a son”.
The ministry termed the promo derogatory towards the girl child, and stated that it tends to support the belief that the sacrifice of a newborn girl may result in the birth of a boy.


Stating that the intention behind the serial may be to create awareness about ‘socially relevant’ issues, joint secretary in the ministry Kiran Chadda, in her letter to the channel, said the pre-launch campaign appears to glorify the rampant practice of killing girls.



India has only 927 girls below 6 years of age for every 1,000 boys with states like Delhi, Punjab, Haryana, Rajasthan and Gujarat having a sex ratio much below the national average.

Colors said it would address the issues raised as and when it receives the notice. Lado deals with female foeticide, rampant the northern and central India.



“The promotion campaign on Colors shows a negative aspect of our society but fails to alert people against such practices,” a ministry official, who was not willing to be quoted, said.

The letter, a copy of which has been sent to the I&B Ministry, also asks channels to be careful while portraying sensitive issues like foeticide. It is the result of protests by several women and child organisations. “Everytime the promo is shown on TV, I have to change the channel... It is devastating,” said Jalal P. Jha, a blogger on wordpress.com.



Chetan Chauhan, Hindustan Times,November 4, 2006