महाराष्ट्र के श्रम मंत्री का कहना है की जिस तरह से टीवी धारवाहिकों में बच्चो से काम लिया जाता है....उससे उनके सेहत और दिमाग दोनों पर बुरा असर हो रहा है....मंत्री महोदय को टीवी में काम करने वाले बच्चे तो नज़र आये पर उन लाखो बच्चो की सुध कौन लेता है...जिन्हें हम स्ट्रीट चिल्ड्रेन के नाम से जानते है...बालिका वधु की आनंदी और उतरन की इच्छा और चक दे बच्चे,लिटिल चम्प्स जैसे कॉम्प्लान बॉय-गर्ल तो उन्हें काम के बोझ से दबे हुए मिले पर उन्हें मुंबई की सरकों पर बूट पोलिश करते , रेलवे स्टेशन पर झारू लगते बच्चो की बेचारगी क्यों नहीं दिखी। और वो बात भी किन बच्चो की करते है जिनकी अगली मंजिल सिल्वर स्क्रीन है ....डूसू चुनाव को राष्ट्रीय राजनीती में कदम का ट्रेनिंग ग्राउंड माने वाले कॉलेज स्टूडेंट्स की तरह ये बच्चे भी चल चित्र पर आने को बेताब हैं....हंसिका मोटवानी, जुगल हंसराज, उर्मिला मातोंडकर, श्वेता प्रसाद, दर्शील सफारी, आयशा कपूर जैसे तो सेंट्रल ऐक्टर में तब्दील हुए मीडिया के बाल मजदूरों की लिस्ट तो लम्बी हो सकती है.....अगर ये खाए पिए अघाये बाल मजदूरों के लिए कानून की सरपरस्ती है तो सचमुच में हड्डी पसली एक करके रोज़ी - रोटी कमाने वाले बच्चो को उनका हक क्यों न दिया जाए।
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3 comments:
बहुत अच्छा िलखा है आपने । िजंदगी और समाज के सच को बडी मािमॆकता से अभिव्यक्त किया है । आम आदमी की पीडा को शब्दबद्ध करने के िलए साधुवाद । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और अपनी राय भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
yeh bhare pet valo ka nazariya hai.
सम्पूर्ण भारत कि बात छोड़ दें, अकेले उत्तर प्रदेश में 2001 की जनगणना के आधार पर 1927997 बाल मजदूरों की पहचान हुई है. इसके एबज में सरकार ने 10वी पंचवर्षीय योजना में 602 करोड़ रूपया आवंटित किया था . अब वो रुपया किस बल मजदूर पर खर्च हुआ ये तो भगवन भी नहीं जानता जनता क्या जानेगी.
एक बात याद आती है ...राम नाम की लूट है लूट सको तो लूट ....
यही बात लोकतंत्र पर भी लागू हो रही है .
भ्रष्टतंत्र की लूट है लूट सको तू लूट ................
रही बात मीडिया की तो उसे तो आभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी करने की स्वतंत्रता है
और मंत्री जी लग्ज़री होम में बैठकर बाल मजदूर ऑन टेलीविजन ही देख सकते है ये उनकी मजबूरी है............
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